बड़बड़ाने की आदत है न ....इसलिए

सोमवार, 22 अगस्त 2016

रात्रिमध्य में मुक्ति दिवस का हैतुक
विधि की लीला , किंचित प्रपंच , या कौतुक ?
या दिनमान-प्रखर से छुप जाने की आशा ?
कुछ श्वेत-श्याम गोपन रखने की अभिलाषा ?
या शयन-मग्न जगत से आँख बचाकर,
अपना ही अनहित कर लेना घबड़ाकर ?
या तज देना पुरखो की शाश्वत रीति-
अरुणोदय पर चैतन्य होने की नीति ?
या सुरा सुंदरी को आलिंगन करके
सोते ही रहना तीक्ष्ण घाम से डरके ?
इनमे किस कारक को सच्चा जाने ?
सुनी हुयी बातें ही हम भी बखाने ?
कुछ विलम्ब के बाद दिवस जब उगता
क्या अपनी जय हेतु शुभ मुहूर्त नहीं रुकता ?